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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2679
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य

अध्याय - 4

 

जायसी

 

प्रश्न- हिन्दी प्रेमाख्यान काव्य-परम्परा में सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी का स्थान निर्धारित कीजिए।

उत्तर -

सूफी सन्तों की काव्य-परम्परा 'प्रेमाख्यान काव्य-परम्परा के नाम से हिन्दी साहित्य के इतिहास में प्रसिद्ध हुई। हिन्दी प्रेमाख्यान काव्य - परम्परा में सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी और उनके लोक प्रसिद्ध प्रबन्ध काव्य 'पद्मावत' का नाम लिया जाता है। कवि जायसी ने स्वयं इन प्रेमाख्यानकों की क्रमबद्ध सूची दी है -

" बहुतन्ह अस जीउ पर खेला। तूं जोगी केहि माँह अकेला॥
विक्रम धँसा पेम के बारौं। सपनावति कहँ गएउ पतारों।
सुदैवच्छ मुगुधावति लागी। कँकन पूरि होइ गा बैरागी॥
राज कुंवर कंचनपुर गएऊ मिरगावती कहँ जोगी अएऊ॥
साधा कुँवर मनोहर जोगू। मधुमालति कहँ कीन्ह बियोगू॥
प्रेमावति कहँ सुरसुर साधा। उखा लागि अनिस्ध बर बाँधा॥"

इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि पद्मावती के आख्यान के पूर्व ही उपर्युक्त सभी आख्यानों की लोक - प्रसिद्धि हो चुकी थी। 'सपनावती', 'मुगधावती', 'मृगावती', मधुमालती और 'प्रेमावती' आदि हिन्दी के प्रेमाख्यान ग्रन्थ 'पद्मावत के पूर्व ही लिखे जा चुके थे। इन सभी प्रेमाख्यान काव्यों के मूल में सूफी सन्तों की ईश्वरोन्मुखी प्रेममयी साधना ही प्रधान रही। यह सूफी साधना दो भागों में व्यक्त हुई, एक तो हिन्दी या खड़ी बोली में और दूसरे अवधी में दोनों ही भाषाओं के माध्यम से मसनवी (कथानक) शैली में लोक- प्रचलित एवं बहुजन - श्रुत प्रेमकथाओं को काव्य का कलेवर प्रदान किया गया, किन्तु वस्तुतः अवधी में लिखा गया सूफी काव्य ही आगे चलकर 'प्रेमाख्यान काव्य' से अभिहित किया गया।

इन प्रेमाख्यानकों में सामान्य लौकिक प्रेम का चित्रण हुआ है और वे शुद्ध लौकिक रति एवं विरति का ही निर्वचन करते हैं - यह धारणा भी असंगत ही है क्योंकि इन प्रेमाख्यानकों का आध्यात्मिक महत्व भी कम नहीं है। प्रेमाख्यानकों के आदि रूप में 'मुल्लादाऊद कृत 'चन्दायन' (अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल से सम्बद्ध) का उल्लेख किया जाता है और जो आदिकालीन रचना है। 'चन्दायन' का कथन भी 'नूरक' और 'चन्दा' की प्रेमकथा ही है। प्रेमाख्यान ग्रन्थों की प्रेमकथाएँ लोक अथवा इतिहास प्रसिद्ध नायक नायिकाओं तक सीमित रहीं, फलतः इनका प्रचार एवं प्रसार भी लोक में उसी व्यापक स्तर पर हुआ। हिन्दी 'प्रेमाख्यान काव्य-परम्परा के अन्तर्गत निम्नलिखित रचनाओं का उल्लेख प्राप्त होता है —

(1) मृगावती - इसके प्रणेता 'शेख कुतुबन' चिश्ती वंश के शेख बुरहान के शिष्य थे और इसका रचनाकाल भी 1560 ई. में निर्धारित किया जाता है। इस काव्य में कंचनगिरि के राजा रूपमुरारि की कन्या 'मृगावती एवं चन्द्रगिरि के राजा गणपति देव के राजकुमार की प्रेम कथा का निरूपण दोहा, चौपाई, सोरठा, और अरिल्ल की प्रेम कथा का निरूपण दोहा, चौपाई, सोरठा, और अरिल्ल छन्दों के माध्यम से हुआ है।

(2) मधुमालती - सूफी कवि 'मंझन कृत 'मधुमालती' की रचना काल निर्धारित नहीं किया जा सका है तथापि काव्य की दृष्टि से प्रेम के स्वरूप तथा सिद्धान्त का निर्वचन करने वाली महारस की राजकुमारी 'मधुमालती' एवं कनेसर के राजकुमार 'मनोहर' की प्रेमकथा ही इसका मुख्य प्रतिपाद्य है। मधुमालती में प्रधान कथा के साथ-साथ उपनायक ताराचन्द तथा उसकी प्रेमिका (उपनायिका) प्रेमा की कथा का भी वर्णन प्राप्त है। कथा संगठन, कथानक का सहज प्रवाह, वर्णनशैली, भाषा की प्रभविष्णुता, प्रेम के स्वरूप का विवेचन तथा उसकी सैद्धान्तिक व्याख्या, विरह की मर्मस्पर्शी चित्रण आदि सभी दृष्टियों से कवि को अपने इस काव्य में पूरी सफलता मिली है।

(3) पद्मावत प्रेमाख्यान काव्य - परम्परा में कुतुबन तथा मंझन को यदि सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी का मार्ग प्रशस्त करने का श्रेय प्रदान किया जाये तो असंगत न होगा। जायसी के परवर्ती 'चित्रावली' के प्रणेता 'उस्मान' ने भी अपने काव्य ग्रन्थ में 'मृगावती' और 'मधुमालती' के बाद ही 'पद्मावत' का उल्लेख किया है। पद्मावत में सिंहलद्वीप के महराज गंधर्वसेन की राजकुमारी पद्मावती तथा चित्तौडगढ नरेश 'रत्नसेन' की प्रेमकथा का अथ्यन्त मर्मस्पर्शी वर्णन प्राप्त होता है। प्रेमाख्यानकों की यह परम्परा उन्नीसवीं शती के पूर्वार्द्ध तक विकसित हुई, जिसका चरम विकास जायसी के इस प्रेमकाव्य में उपलब्ध होता है।

(4) चित्रावली - 'उस्मान' कृत 'चित्रावली' का रचनाकाल सन् 1613 ई. माना जाता है। इसकी कथा नेपाल के किसी राजकुमार 'सुजान' तथा 'चित्रावली' और सागर की महारानी 'कमलावती की शुद्ध काल्पनिक प्रेमकथा है। कथा की नायिका 'चित्रावली' भी रूपनगर की राजकुमारी है। जायसीकृत 'पद्मावत' की ही शैली पर लिखा गया यह काव्य अपना निजी महत्व रखता है। इसकी भाषा अवधी होने पर भी भोजपुरी से कुछ प्रभावित है।

(5) ज्ञानदीप - शेख नबी द्वारा प्रणीत इस काव्यग्रन्थ का रचनाकाल 1619 ई. माना जाता है। इसमें महाराज 'ज्ञानद्वीप' एवं 'देवयानी' की कथा का वर्णन हुआ है।

(6) हंस जवाहर सन् 1731 ई. में कासिमशाह द्वारा लिखे गये इस काव्य ग्रन्थ में राजा हंस तथा रानी जवाहर की प्रेमकथा का निरूपण हुआ है। रत्नसेन की भांति ही राजा हंस भी जवाहर के प्रेम में योगी होकर निकल जाता है और अन्त में उसे प्राप्त करके ही वापस लौटता है। यह भी लौकिक तत्वों के साथ-साथ आद्यन्त अलौकिक तत्वों को पूरी तरह प्राधान्य देने वाला काव्य है।

(7) इसके उपरान्त 'नूर मुहम्मद' के नाम से लिखी गयी दो रचनाएँ 'इन्द्रावली' (रचनाकाल 1744 ई.) और अनुराग बाँसुरी (रचनाकाल 1764 ई. के लगभग) भी इस काव्य परम्परा के ही अन्तर्गत आती है।

(9) प्रेमरतन - 'नूर मुहम्मद जिनका उपनाम 'कामयाब भी मिलता है, के बाद सन् 1848 ई. में 'फाजिलशाह' द्वारा रचित 'प्रेमरतन' का नाम आता है, जिसमें मात्र इसके कि 'नूरशाह' एवं 'माहमुनीर' की प्रेमकथा वर्णित है, उन्हीं सब बातों की ही पुनरावृत्ति है जो अन्य प्रेमाख्यानकों में उपलब्ध होती है।

इसी क्रम में 'नल-दमन', 'माधवानल', 'युसूफ जुलेखा आदि काव्यग्रन्थों का नाम भी उल्लेखनीय हैं, किन्तु इनका कोई साहित्यिक महत्व नहीं है। डॉ. पृथ्वीनाथ कुलश्रेष्ठ 'कमल' ने 'पुहुपावली' (रचनाकाल सन् 1669 ई.) नामक एक अन्य प्रेमाख्यान काव्य रचना का उल्लेख किया है, जिसके प्रणेता 'दुःख हरनदास' हैं। 'पुहुपावती एक उच्चकोटि का अध्यात्म-परक सूफी काव्य है जिसमें राजकुमारी पुष्पावती की प्रेम कथा का वर्णन हुआ है।

हिन्दी प्रेमाख्यान - काव्य- परम्परा के अन्तर्गत प्रतिष्ठित उपर्युक्त सभी काव्यग्रन्थों का विवेचन करने के उपरान्त यही निष्कर्ष निकलता है कि इन सभी काव्यों में लोक में प्रचलित प्रेमकथाओं का वर्णन है। ये प्रेम कथाएँ या तो इतिहास सम्मत हैं या कवि कल्पना प्रसूत। इनके नायक एवं नायिकाएँ समाज के उच्च वर्ग - राजा और रानी अथवा राजकुमार और राजकुमारी कोटि के पात्र हैं। इनमें लक्षण या प्रवृत्ति से निवृत्ति मार्ग को ही प्रशस्त किया गया है। इन सभी काव्यग्रन्थों में भाषा एवं छन्दगत साम्य तो है ही, साथ ही कथा कहने की शैली भी लगभग कुछ एक जैसी ही है। इन समस्त काव्यों के प्रणेता भी सूफी मत के प्रचारक या अनुयायी ही ज्ञात होते हैं, जिनका हृदय 'प्रेम की पीर से भरा हुआ है। साम्प्रदायिक वैमनस्य को दूरकर भारतीय समाज में हिन्दुओं एवं मुसलमानों के बीच वैचारिक सन्तुलन स्थापित करने में जितना अधिक योगदान इन प्रेमाख्यान ग्रन्थों का रहा, उतना किसी भी अन्य साधन का नहीं। इस प्रकार निर्गुण एवं सगुण भक्ति का विलक्षण समन्वय इन भारतीय सूफी प्रेमाख्यानकों की अपनी विशिष्टता ही नहीं मौलिकता भी रही है।

प्रबन्ध-काव्य के पूर्णता की चरम परिणति रूप जायसीकृत 'पद्मावत' का सूफी सन्तों की इस काव्य परम्परा में अपना विशिष्ट स्थान है तथापि कालान्तर में कवि एवं उसकी कृति के साथ वह न्यायोचित दृष्टिकोण नहीं अपनाया गया जिसका वह वास्तविक अधिकारी था। पाठकों और विद्वत्समाज का मौन निमंत्रण उसका आह्वान तो करता रहा, किन्तु उसके प्रति वह अभिरुचि नहीं आ सकी। कारण कुछ भी हो, यह तो निर्विवाद ही है कि सगुण भक्तिकाव्य परम्परा में जो समादर 'रामचरितमानस' को प्राप्त हुआ उससे निर्गुण भक्ति काव्य परम्परा ही यह अनुपम इकाई सर्वथा वंचित रही। यद्यपि तुलसी एवं जायसी इन दोनों ही महाकवियों ने समसामयिक लोकजीवन को दृष्टि में रखते हुए अपने-अपने विचारों एवं सिद्धान्तों को प्रतिपादन का मूल श्रेय साधन रूप में तात्कालिक लोकभाषा एवं छन्दों को ही दिया। दोनों में अन्तर यदि कुछ रहा भी तो एकमात्र यही कि एक ने लोक-जीवन को मर्यादित कलेवर प्रदान किया, जबकि दूसरे ने किसी भी प्रकार की मर्यादा को प्रेम के व्यापक परिवेश में अनावश्यक एवं अनपेक्षित स्वीकार करते हुए लोक-जीवन का सहज प्रवाह अपने काव्य में अनुप्राणित कर दिया। इसी कारण हिन्दी साहित्य में सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी का नाम गोस्वामी तुलसीदास के नाम से यदि अधिक नहीं तो कम महत्व भी नहीं रखता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- गीतिकाव्य के प्रमुख तत्वों के आधार पर विद्यापति के गीतों का मूल्यांकन कीजिए।
  3. प्रश्न- "विद्यापति भक्त कवि हैं या श्रृंगारी" इस सम्बन्ध में प्रस्तुत विविध विचारों का परीक्षण करते हुए अपने पक्ष में मत प्रस्तुत कीजिए।
  4. प्रश्न- विद्यापति भक्त थे या शृंगारिक कवि थे?
  5. प्रश्न- विद्यापति को कवि के रूप में कौन-कौन सी उपाधि प्राप्त थी?
  6. प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि विद्यापति उच्चकोटि के भक्त कवि थे?
  7. प्रश्न- काव्य रूप की दृष्टि से विद्यापति की रचनाओं का मूल्यांकन कीजिए।
  8. प्रश्न- विद्यापति की काव्यभाषा का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  9. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (विद्यापति)
  10. प्रश्न- पृथ्वीराज रासो की प्रामाणिकता एवं अनुप्रामाणिकता पर तर्कसंगत विचार प्रस्तुत कीजिए।
  11. प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो' के काव्य सौन्दर्य का सोदाहरण परिचय दीजिए।
  12. प्रश्न- 'कयमास वध' नामक समय का परिचय एवं कथावस्तु स्पष्ट कीजिए।
  13. प्रश्न- कयमास वध का मुख्य प्रतिपाद्य क्या है? अथवा कयमास वध का उद्देश्य प्रस्तुत कीजिए।
  14. प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
  15. प्रश्न- पृथ्वीराज रासो का 'समय' अथवा सर्ग अनुसार विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  16. प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो की रस योजना का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- 'कयमास वध' के आधार पर पृथ्वीराज की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- 'कयमास वध' में किन वर्णनों के द्वारा कवि का दैव विश्वास प्रकट होता है?
  19. प्रश्न- कैमास करनाटी प्रसंग का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  20. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (चन्दबरदायी)
  21. प्रश्न- जीवन वृत्तान्त के सन्दर्भ में कबीर का व्यक्तित्व स्पष्ट कीजिए।
  22. प्रश्न- कबीर एक संघर्षशील कवि हैं। स्पष्ट कीजिए?
  23. प्रश्न- "समाज का पाखण्डपूर्ण रूढ़ियों का विरोध करते हुए कबीर के मीमांसा दर्शन के कर्मकाण्ड की प्रासंगिकता पर प्रहार किया है। इस कथन पर अपनी विवेचनापूर्ण विचार प्रस्तुत कीजिए।
  24. प्रश्न- कबीर एक विद्रोही कवि हैं, क्यों? स्पष्ट कीजिए।
  25. प्रश्न- कबीर की दार्शनिक विचारधारा पर एक तथ्यात्मक आलेख प्रस्तुत कीजिए।
  26. प्रश्न- कबीर वाणी के डिक्टेटर हैं। इस कथन के आलोक में कबीर की काव्यभाषा का विवेचन कीजिए।
  27. प्रश्न- कबीर के काव्य में माया सम्बन्धी विचार का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  28. प्रश्न- "समाज की प्रत्येक बुराई का विरोध कबीर के काव्य में प्राप्त होता है।' विवेचना कीजिए।
  29. प्रश्न- "कबीर ने निर्गुण ब्रह्म की भक्ति पर बल दिया था।' स्पष्ट कीजिए।
  30. प्रश्न- कबीर की उलटबासियों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  31. प्रश्न- कबीर के धार्मिक विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (कबीर)
  33. प्रश्न- हिन्दी प्रेमाख्यान काव्य-परम्परा में सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी का स्थान निर्धारित कीजिए।
  34. प्रश्न- "वस्तु वर्णन की दृष्टि से मलिक मुहम्मद जायसी का पद्मावत एक श्रेष्ठ काव्य है।' उक्त कथन का विवेचन कीजिए।
  35. प्रश्न- महाकाव्य के लक्षणों के आधार पर सिद्ध कीजिए कि 'पद्मावत' एक महाकाव्य है।
  36. प्रश्न- "नागमती का विरह-वर्णन हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि है।' इस कथन की तर्कसम्मत परीक्षा कीजिए।
  37. प्रश्न- 'पद्मावत' एक प्रबन्ध काव्य है।' सिद्ध कीजिए।
  38. प्रश्न- पद्मावत में वर्णित संयोग श्रृंगार का परिचय दीजिए।
  39. प्रश्न- "जायसी ने अपने काव्य में प्रेम और विरह का व्यापक रूप में आध्यात्मिक वर्णन किया है।' स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- 'पद्मावत' में भारतीय और पारसीक प्रेम-पद्धतियों का सुन्दर समन्वय हुआ है।' टिप्पणी लिखिए।
  41. प्रश्न- पद्मावत की रचना का महत् उद्देश्य क्या है?
  42. प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद को समझाइए।
  43. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (जायसी)
  44. प्रश्न- 'सूरदास को शृंगार रस का सम्राट कहा जाता है।" कथन का विश्लेषण कीजिए।
  45. प्रश्न- सूरदास जी का जीवन परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं का उल्लेख कीजिए?
  46. प्रश्न- 'भ्रमरगीत' में ज्ञान और योग का खंडन और भक्ति मार्ग का मंडन किया गया है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  47. प्रश्न- "श्रृंगार रस का ऐसा उपालभ्य काव्य दूसरा नहीं है।' इस कथन के परिप्रेक्ष्य में सूरदास के भ्रमरगीत का परीक्षण कीजिए।
  48. प्रश्न- "सूर में जितनी सहृदयता और भावुकता है, उतनी ही चतुरता और वाग्विदग्धता भी है।' भ्रमरगीत के आधार पर इस कथन को प्रमाणित कीजिए।
  49. प्रश्न- सूर की मधुरा भक्ति पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  50. प्रश्न- सूर के संयोग वर्णन का मूल्यांकन कीजिए।
  51. प्रश्न- सूरदास ने अपने काव्य में गोपियों का विरह वर्णन किस प्रकार किया है?
  52. प्रश्न- सूरदास द्वारा प्रयुक्त भाषा का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- सूर की गोपियाँ श्रीकृष्ण को 'हारिल की लकड़ी' के समान क्यों बताती है?
  54. प्रश्न- गोपियों ने कृष्ण की तुलना बहेलिये से क्यों की है?
  55. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (सूरदास)
  56. प्रश्न- 'कविता कर के तुलसी ने लसे, कविता लसीपा तुलसी की कला। इस कथन को ध्यान में रखते हुए, तुलसीदास की काव्य कला का विवेचन कीजिए।
  57. प्रश्न- तुलसी के लोक नायकत्व पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- मानस में तुलसी द्वारा चित्रित मानव मूल्यों का परीक्षण कीजिए।
  59. प्रश्न- अयोध्याकाण्ड' के आधार पर भरत के शील-सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।
  60. प्रश्न- 'रामचरितमानस' एक धार्मिक ग्रन्थ है, क्यों? तर्क सम्मत उत्तर दीजिए।
  61. प्रश्न- रामचरितमानस इतना क्यों प्रसिद्ध है? कारणों सहित संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
  62. प्रश्न- मानस की चित्रकूट सभा को आध्यात्मिक घटना क्यों कहा गया है? समझाइए।
  63. प्रश्न- तुलसी ने रामायण का नाम 'रामचरितमानस' क्यों रखा?
  64. प्रश्न- 'तुलसी की भक्ति भावना में निर्गुण और सगुण का सामंजस्य निदर्शित हुआ है। इस उक्ति की समीक्षा कीजिए।
  65. प्रश्न- 'मंगल करनि कलिमल हरनि, तुलसी कथा रघुनाथ की' उक्ति को स्पष्ट कीजिए।
  66. प्रश्न- तुलसी की लोकप्रियता के कारणों पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- तुलसीदास के गीतिकाव्य की कतिपय विशेषताओं का उल्लेख संक्षेप में कीजिए।
  68. प्रश्न- तुलसीदास की प्रमाणिक रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
  69. प्रश्न- तुलसी की काव्य भाषा पर संक्षेप में विचार व्यक्त कीजिए।
  70. प्रश्न- 'रामचरितमानस में अयोध्याकाण्ड का महत्व स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- तुलसी की भक्ति का स्वरूप क्या था? अपना मत लिखिए।
  72. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (तुलसीदास)
  73. प्रश्न- बिहारी की भक्ति भावना की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- बिहारी के जीवन व साहित्य का परिचय दीजिए।
  75. प्रश्न- "बिहारी ने गागर में सागर भर दिया है।' इस कथन की सत्यता सिद्ध कीजिए।
  76. प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर विचार कीजिए।
  77. प्रश्न- बिहारी बहुज्ञ थे। स्पष्ट कीजिए।
  78. प्रश्न- बिहारी के दोहों को नाविक का तीर कहा गया है, क्यों?
  79. प्रश्न- बिहारी के दोहों में मार्मिक प्रसंगों का चयन एवं दृश्यांकन की स्पष्टता स्पष्ट कीजिए।
  80. प्रश्न- बिहारी के विषय-वैविध्य को स्पष्ट कीजिए।
  81. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (बिहारी)
  82. प्रश्न- कविवर घनानन्द के जीवन परिचय का उल्लेख करते हुए उनके कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- घनानन्द की प्रेम व्यंजना पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  84. प्रश्न- घनानन्द के काव्य वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालिए।
  85. प्रश्न- घनानन्द का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  86. प्रश्न- घनानन्द की काव्य रचनाओं पर प्रकाश डालते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
  87. प्रश्न- घनानन्द की भाषा शैली के विषय में आप क्या जानते हैं?
  88. प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
  89. प्रश्न- घनानन्द के अनुसार प्रेम में जड़ और चेतन का ज्ञान किस प्रकार नहीं रहता है?
  90. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (घनानन्द)

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